Thursday 29 May, 2008

हम देखेंगे

हम देखेंगे

लाज़िम है केः हम भी देखेंगे

वोः दिन केः जिसका वादा है

जो लौह--अज़ल में लिक्खा है

जब ज़ुल्म--सितम के कोह--गराँ

रूई की तरह उड़ जायेंगे

हम महकूमों के पाँवों-तले

जब धरती धड़ धड़ धड़केगी

और अह्‍ल--हिकम के सर ऊपर

जब बिजली कड़ कड़ कड़केगी

जब अर्ज़--ख़ुदा के का'बे से

सब बुत उठवाये जायेंगे

हम अह्‍ल--सफ़ा,मर्दूद--हरम

मसनद पेः बिठाये जायेंगे

सब ताज उछाले जायेंगे

सब तख़्त गिराये जायेंगे

बस नाम रहेगा अल्लाह का

जो ग़ायब भी है हाज़िर भी

जो मंज़र भी है,नाज़िर भी

उट्ठेगा 'अनक हक़' का नारा

जो मैं भी हूँ और तुम भी हो

और राज करेगी ख़ल्क- ख़ुदा

जो मैं भी हूँ और तुम भी हो

Wednesday 28 May, 2008

चलो फिर से मुस्कुराएँ

चलो फिर से मुस्कुराएँ

चलो फिर से दिल जलाएँ

जो गुज़र गई है रातें

उन्हें फिर जगा के लायँ

जो बिसर गई हैं बातें

उन्हें याद में बुलाएँ

चलो फिर से दिल लगाएँ

चलो फिर से मुस्कुराएँ

किसी शह-नशीं पे झलकी

वोः धनक किसी क़बा की

किसी रग में कसमसाई

वोः कसक किसी अदा की

कोई हर्फ़-- मुरव्वत

किसी कुंज--लब से फूटा

वोः छनक के शीशा-- दिल

तह--बाम फिर से टूटा

येः मिल की, नामिलन की

ये लगन की और जलन की

जो सही हैं वारदातें

जो गुज़र गई हैं रातें

जो बिसर गई हैं बातें

कोई इनकी धुन बनाएँ

कोई इनका गीत गाएँ

चलो फिर से मुस्कुराएँ

चलो फिर से दिल जलाएँ

Monday 26 May, 2008

तराना

दरबार--वतन में जब इक दिन सब जाने वाले जायेंगे
कुछ अपनी सज़ा को पहुँचएंगे,कुछ अपनी जज़ा ले जायेंगे

ऎ ख़ाक-नसीनों उठ बैठो,वो वक़्त क़रीबा पहुँचा है
जब तख़्त गिराये जायेंगे,जब ताज उछाले जायेंगे

अब टूट गिरेंगी ज़ंजीरें,अब ज़िन्दानो की खैर नहीं
जो दरिया झूम के उट्ठे हैं,तिनकों से टाले जायेंगे

भी चलो,बढ़ते भी चलो,बाजू भी बहुत हैं सर भी बहुत
चलते भी चलो के : अब डेरे मंजिल ही पे डाले जायेंगे

ऎ जुल्म के मातो,लब खोलो,चुप रहनेवालो,चुप कब तक
कुछ हश्र तो इनसे उट्ठेगा,कुछ दूर तो नाले जायेंगे