Monday 26 May, 2008

तराना

दरबार--वतन में जब इक दिन सब जाने वाले जायेंगे
कुछ अपनी सज़ा को पहुँचएंगे,कुछ अपनी जज़ा ले जायेंगे

ऎ ख़ाक-नसीनों उठ बैठो,वो वक़्त क़रीबा पहुँचा है
जब तख़्त गिराये जायेंगे,जब ताज उछाले जायेंगे

अब टूट गिरेंगी ज़ंजीरें,अब ज़िन्दानो की खैर नहीं
जो दरिया झूम के उट्ठे हैं,तिनकों से टाले जायेंगे

भी चलो,बढ़ते भी चलो,बाजू भी बहुत हैं सर भी बहुत
चलते भी चलो के : अब डेरे मंजिल ही पे डाले जायेंगे

ऎ जुल्म के मातो,लब खोलो,चुप रहनेवालो,चुप कब तक
कुछ हश्र तो इनसे उट्ठेगा,कुछ दूर तो नाले जायेंगे

3 comments:

शोभा said...

बहुत सुन्दर शेर हैं। बधाई स्वीकारें।

Jitendra Dave said...

congrests.keep up.

Asha Joglekar said...

वहुत शुक्रिया फैज़ साहब से मिलवाने का । चलते चलिये ।