Monday 2 July, 2007

आज की रात

आज की रात साज़-ए-दर्द नः छेड़
दुख से भरपूर दिन तमाम हुए
और कल की ख़बर किसे मालूम
दोश-ओ-फ़र्दा की मिट चुकी हैं हुदूद
हो नः हो अब स़हर किसे मालूम
ज़िंदगी हेच !लेकिन आज की रात
ए़ज़दीयत है मुमकिन आज की रात
आज की रात साज़-ए-दर्द नः छेड़



अब न दौहरा फ़साना-हाए-अलम
अपनी क़िस्मत पे सोगवार नःहो
फ़िक्र-ए-फ़र्दा उतार दे दिल से
उम्र-ए-रफ़्ता पे अश्कबार नःहो


अहद-ए-ग़म की हिकायतें मत पूछ
हो चुकी सब शिकायतें मत पूछ
आज की रात साज़-ए-दर्द नः छेड़ !

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